मनुष्य असफलताओं और
सतत पीड़ा के घेरे
में घिरे होने पर
स्वयं के संघर्ष के
लिए
एक मात्र मिथ्या आस
को
ठहराता है दोषी
प्रारब्ध और भाग्य
को
कई बार इन आभासी
अवलम्बों से
उबार लेता है स्वयं
को
किन्तु जब उबर पाने के
नहीं दिखाई देते
संकेत
तो फिर वह कहता है
ईश्वर की शायद यही
इच्छा थी
हाँ यदि वह पा जाता
है
कोई बड़ी उपलब्धि या
सफलता
तब वह भाग्य या प्रारब्ध अथवा
ईश्वर को नहीं देता
श्रेय
वह कहता है,
मेरे अथक श्रम का परिणाम
है
स्वयं के सामर्थ्य
से किया है
अकेले में कभी सोचा
था
आज लिख रहा हूँ
अपवादों को छोड़कर
मनुष्यों में
कितना बड़ा गुण है
दोगलापन
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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