अक्सर लोग सोचते हैं और
अक्सर उद्घाटित भी करते हैं
अपनी सफलताओं के बारे में
विशेष उपलब्धियों के बारे में
देते हैं श्रेय अपने अपने
सबसे निकट के संबंधों को
और बहुत से लोग अपने मित्रों को
कुछ लोग ऐसे भी
जो कुछ भाग्य को
कुछ माता-पिता व
शुभचिंतकों के आशीष को
और कुछ लोग मात्र स्वयं के कर्म
और योग्यता को
मैं इन सबसे इतर सोचता हूँ
कभी आप भी सोचना
ठंडे मन से एकांत में
शायद मेरा सोचना
“ठीक” के आसपास या ठीक लगे
मुझे लगता है
हमारी उपलब्धियों और
बड़ी सफलताओं का श्रेय
हमारे शत्रुओं और निंदकों को जाता है
जो हमें लताड़ते हैं,
अपमानित करना चाहते हैं
धिक्कार हैं और
निकम्मा घोषित करते हैं
और हम उसके प्रतिरोध में
उसकी घोषणाओं को
गलत साबित करने के लिए
जुट जाते हैं प्राण प्रण से
और फिर एक दिन हम
उन्हें गलत साबित कर देते हैं
वास्तव में वही हमारे सच्चे प्रेरक होते हैं
हमारी उपलब्धियों का श्रेय
उन्हें भी जाता है
हमारे देने या न देने से
नेपथ्य का सत्य नहीं बदल जाता
हाँ, सफलता का पर्दा
कई बार हमें
सत्य से वंचित कर देता है
हाँ मैं सफल तो नहीं हूँ
कोई उपलब्धि भी नहीं है
जिसे गिना सकूँ
पर अपने संघर्ष की जिजीविषा के
श्रेय का एक बड़ा हिस्सा
अपने शत्रु मित्रों के नाम करता हूँ
वह सामने से शत्रु और
नेपथ्य से मित्र हैं
अब बताइए
आप क्या सोचते हैं ?
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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