आज कल जब
समाचार सुनता हूँ
बेटियों के साथ
दुराचार और हत्या!
तब मुझे अपनी बेटी की
छवि याद आती है ;
और रोम खड़े हो जाते हैं;
कलेजा मुँह को आने लगता है!
और फिर सुनता हूँ कि
घटना के १२ घंटे बाद,
24 घंटे बाद, ४८ घण्टे, ७२ घंटे
और न जाने कितने दिन
पुलिस टालती है
केस दर्ज करने से
तो सोचता हूँ शायद
पुलिस वालों के पास
बेटियाँ नहीं होती!
फिर सोचता हूँ
पुलिस वाले भी तो
बेटियों से ही जन्मते होंगे
?
पवन तिवारी