यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

अनुक्रमणिका के बिना


अनुक्रमणिका के बिना पुस्तक सा जीवन हो गया है

उल्लसित मन जो हुआ  करता  था जैसे खो गया है

समय  ने  सारे पराक्रम  को  मिला डाला है क्षण में

हँसता  आनन  सतत था  जो  आज जैसे रो गया है

 

प्रेम   पूरित   एक    धागा   टूटने   से  ये  हुआ है

खुरदुरे  हाथों  से  जैसे  कोई  घावों  को  छुआ है

एक  पीड़ा  रूप  के  बिन  भी  सताती  जा  रही

और  जीवन  दाव  पर  लगता  हुआ जैसे जुआ है

 

क्या है ऐसा प्रेम में  जो  बिछड़ने  पर मारता है

और मिलने पर भला क्यों  देव  जैसा  तारता है

प्रेम को उपहार मानो पुण्य मानों या कि जो भी

किन्तु यह बिलकुल न मानो हारता कोई जीतता है

 

त्रास  से  सम्बंध  इसका  हर्ष  से  भी  मित्रता है

हर किसी को भिगो देता  इसमें  ऐसी  आर्द्रता है

बच सके इससे तो अच्छा मिल गया तो भी है उत्तम

हर किसी को मोह लेता इसमें   ऐसी  पात्रता  है   

 

पवन तिवारी

३१/०३/२०२२

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