अनुक्रमणिका
के बिना पुस्तक सा जीवन हो गया है
उल्लसित
मन जो हुआ करता था जैसे खो गया है
समय
ने सारे पराक्रम
को मिला डाला है क्षण में
हँसता
आनन सतत था
जो आज जैसे रो गया है
प्रेम
पूरित एक धागा टूटने से ये हुआ
है
खुरदुरे
हाथों से जैसे
कोई घावों को
छुआ है
एक पीड़ा रूप
के बिन भी सताती जा रही
और जीवन दाव पर लगता हुआ जैसे जुआ है
क्या
है ऐसा प्रेम में जो बिछड़ने पर मारता है
और
मिलने पर भला क्यों देव जैसा तारता
है
प्रेम
को उपहार मानो पुण्य मानों या कि जो भी
किन्तु
यह बिलकुल न मानो हारता कोई जीतता है
त्रास
से सम्बंध इसका
हर्ष से भी मित्रता है
हर
किसी को भिगो देता इसमें ऐसी आर्द्रता
है
बच
सके इससे तो अच्छा मिल गया तो भी है उत्तम
हर
किसी को मोह लेता इसमें ऐसी पात्रता
है
पवन
तिवारी
३१/०३/२०२२
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