दे रहा सर्वस्व तब वो ले न पाया
और
व्यवहारों की नइया खे न पाया
आया
खाली हाथ लुट
के पास वो
न्याय
संगत कुछ विलक्षण दे न पाया
पक्ष
पोषक भी विरोधी हो
गया है
और
नैतिकता को बिलकुल धो गया है
ऐसे
में अवलम्ब केवल धर्म ही
है
समय
आकर स्वयं काँटा बो गया है
अब
न सम्बंधों का कोई मोल होगा
आचरण
ही शुद्धता का तोल होगा
निकट
में बस मौन का संताप होगा
संयमित
बस धर्म का ही बोल होगा
दुर्दिनों
में बात मेरी बाँध रखना
धर्म
को हर काल में ही पास रखना
काल
जब भी दंड लेकर आयेगा
धर्म
ही प्रतिकार होगा याद रखना
पवन
तिवारी
३१/०३/२२०२
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