यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

दे रहा सर्वस्व तब वो


दे  रहा  सर्वस्व  तब  वो  ले न पाया

और व्यवहारों की नइया खे न पाया

आया  खाली  हाथ  लुट के पास वो 

न्याय संगत कुछ विलक्षण दे न पाया

 

पक्ष  पोषक  भी  विरोधी  हो  गया है

और नैतिकता को बिलकुल धो गया है

ऐसे  में  अवलम्ब  केवल  धर्म  ही  है

समय  आकर  स्वयं काँटा बो  गया है

 

अब न सम्बंधों  का कोई मोल होगा

आचरण ही  शुद्धता  का तोल होगा

निकट में बस मौन का संताप होगा

संयमित बस धर्म का ही बोल होगा

 

दुर्दिनों  में  बात  मेरी  बाँध रखना

धर्म को हर काल में ही पास रखना

काल  जब  भी  दंड  लेकर आयेगा

धर्म ही प्रतिकार होगा याद रखना

 

पवन तिवारी

३१/०३/२२०२  

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