स्नेह
के
परिसर
से भागे
जंगलों
में कुछ अभागे
जंगली
समझा रहे हैं
क्रांति
के हो तुम अभागे
जो प्रबोधक
बन रहे हैं
वे सभी तंद्रा
के
सहचर
कितने
तुम बनते हो अनुचर
जो
भटकते बन के वनचर
स्वयं का
करके निरीक्षण
मेरा भी
करके परीक्षण
फिर
किसी निर्णय पे पहुँचे
देख पाओ
सत्य का क्षण
कर
सको अनुताप यदि तुम
सह
सके संताप यदि
तुम
होके
परिमार्जिक खिलोगे
सुने
सच की थाप यदि तुम
पवन
तिवारी
३१/०३/२०२२
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