यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 20 जुलाई 2022

स्नेह के परिसर से भागे

स्नेह    के   परिसर  से  भागे

जंगलों    में    कुछ   अभागे

जंगली    समझा    रहे    हैं

क्रांति  के  हो  तुम   अभागे

 

जो    प्रबोधक   बन   रहे  हैं

वे  सभी   तंद्रा   के   सहचर

कितने तुम बनते  हो अनुचर

जो भटकते  बन   के  वनचर

 

स्वयं  का  करके  निरीक्षण

मेरा  भी   करके  परीक्षण

फिर किसी निर्णय पे पहुँचे

देख  पाओ  सत्य  का क्षण

 

कर सको अनुताप यदि तुम

सह सके  संताप  यदि  तुम

होके परिमार्जिक  खिलोगे

सुने सच की थाप यदि तुम 

 

 

पवन तिवारी

३१/०३/२०२२   

 

 

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