वो चाह रहे
हैं अभिनन्दन
इसलिए
कर रहे हैं वंदन
कुछ
अहि मदांध इतने हैं हुए
व्यापना
चाहते हैं चन्दन
कुछ
शोणित भाल लिए घूमें
सुर
जैसे हैं कलि
को चूमें
वारुणी
पियें मन्दिर जायें
हैं भक्ति लीन
ऐसे
झूमें
कैसे
– कैसे हैं दृश्य यहाँ
अचरज
पग पग आये हैं कहाँ
सुरलोक
से अद्भुत मृत्युलोक
सुर
भी आना चाह
ते यहाँ
यहाँ
की माया अद्भुत माया
हर लोक से है सुंदर काया
यहाँ
पाप पुण्य आनन्द शोक
थोड़ा
- थोड़ा सबने पाया
अद्भुत
महिमा है धन्य धरा
दूषित
है फिर भी हरा भरा
हे
धरणी तुमको कोटि नमन
सब पर समान है स्नेह झरा
पवन
तिवारी
१७/१०/२०२१
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