यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 27 जून 2022

वो चाह रहे हैं अभिनन्दन

वो  चाह  रहे  हैं अभिनन्दन

इसलिए  कर  रहे   हैं  वंदन

कुछ अहि मदांध इतने हैं हुए

व्यापना  चाहते  हैं   चन्दन

 

कुछ शोणित भाल लिए घूमें

सुर  जैसे  हैं  कलि  को  चूमें

वारुणी  पियें  मन्दिर  जायें

हैं  भक्ति  लीन   ऐसे   झूमें

 

कैसे   कैसे   हैं  दृश्य  यहाँ

अचरज पग पग आये हैं कहाँ

सुरलोक से अद्भुत मृत्युलोक

सुर  भी  आना  चाह ते यहाँ

 

यहाँ की माया  अद्भुत माया

हर  लोक  से  है  सुंदर काया

यहाँ पाप पुण्य  आनन्द शोक

थोड़ा - थोड़ा   सबने   पाया  

 

अद्भुत महिमा है धन्य धरा

दूषित है फिर भी हरा भरा

हे धरणी तुमको कोटि नमन

सब  पर समान है स्नेह झरा   

 

पवन तिवारी

१७/१०/२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें