थोड़ा
- थोड़ा अलसाया सा बदन ऐंठ कर उठता है
कल की शाम
का सोया सूरज मुस्का करके जगता है
चिड़ियों
का कलरव यूँ
गूँजे जैसे स्वर में वाद्य बजे
अँधियारे
का विशाल दीपक हो करके लघु बुझता
है
आशाओं
से भरी प्रात
में जीवन हँसकर चलता है
भोर
में जो सूरज
से मिलता उसका जीवन फलता है
प्रात
की भी अपनी महिमा है वैद्य बड़ा जीवन का है
उठे
प्रात जो सूर्य से पहले उसका रोग शोक जलता है
थोड़ी
- थोड़ी सकुचाई सी शीत प्रेम भी करती
है
सहमी
- सहमी शीत के मारे
माटी थोड़ी डरती है
ये सब सुन्दर
भाव ही मिलकर दिन का माँ बढ़ाते हैं
हवा
भी हौले - हौले चलकर सुबह का आँचल भरती है
सारे
लोग व्यस्त हो जाते जीवन अपने में रम जाता
कितना
सुंदर जीवन लगता रोज सुबह जब प्रात है गाता
जग भर में ही प्रात
अकेला नव जीवन की आशा है
जीवन
का आरम्भ प्रात है इसीलिये जग प्रात को
भाता
पवन
तिवारी
१४/१०/२०२१
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