पीड़ा
पर अपने सारे चुप
खुशियों
पर संग हँसते
हैं
सच
तो ये है हँसी भी नकली
अंदर – अंदर धँसते
हैं
असफलताओं
पर वे अक्सर
मीठे
ताने कसते हैं
उससे
भी हम प्रेरित होते
वे कोयले
से जलते हैं
रिश्तों
का यह सत्य न नूतन
किन्त्तु
इस समय ज्यादा है
उनके
दुःख में हमरी खुशियाँ
का हिस्सा भी आधा
है
आप हैं अपने कहते
हुए भी
सब हैं अवसर की तलाश में
बाबू,
भइया, साथी, चाचा
बँधे
हैं सब स्वारथ के पाश में
पीड़ा
छल को कम पीना तो
अपनी मेधा
पर जीना है
अपने
पौरुष पर विश्वास तो
फिर
समझो चौड़ा सीना है
पवन
तिवारी
०५/१०/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें