तुम रहो सदा ही नन्द
मुझे प्रिय होगा यही प्रसंग
तुम्हें समृद्ध करे यदि प्रेम
हैं मेरी वान्छायें बस चंद
लिखूँ मैं ऐसा कोई
बंध
हर्ष से झूमें सुनकर छंद
सभी आतुर हों होने मित्र
कि पसरे ऐसी सुंदर गंध
सभा हो अन्धकार की भंग
सूर्य भी आयें थोड़ा मध्यम मंद
रचें कविता में ऐसे
भाव
पवन भी बहे धीमे सानंद
मेरा लिखना शब्दों में व्यंग्य
कहीं शब्दों में
थोड़ी सुगंध
सभी का ध्येय लोक मंगल
कभी भी अर्थ करें यदि दंग
पवन तिवारी
१५/१०/२०२१
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