जेठ
की धूप को मैं बहुत हूँ सहा
चाहता
धूप अगहन सा कोई मिले
त्रास
ने ताप ने मुझको झुलसाया है
चाहता
हूँ ये जीवन पुनः पुनि खिले
देखता
हूँ प्रकृति ख़ूब सुंदर लगे है
लोग
कैसे यहाँ हैं ज़हर से भरे
प्रेम
से है अधिक
वैर,इर्ष्या, जलन
प्रेम
की बात भी
कोई कैसे करे
तत्त्व
जीवन की ख़ातिर बहुत चाहिए
काटना
और जीना अलग बात
है
मिल
गया सारा कुछ प्रेम वंचित रहा
उसके
जीवन में दिन से अधिक रात है
इसलिए
चाहता प्रेम का साथ
हो
हे
प्रभु ! कोई अच्छा सा साथी मिले
चाहता
हूँ जीना थक
रहा हूँ मगर
प्रेम
उपहार देकर मिटा
दो गिले
पवन
तिवारी
२४/१०/२०२१
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