यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 26 मई 2022

पातन पर ठहरी है

पातन  पर  ठहरी  है  ये जो गुजरिया

वृष्टि झरे टप टप टप बहे जो बयरिया

झोका कोई आये जो मस्ती में झूम के

 ऐसे  लचके डाली  हो जैसे कमरिया

 

वृष्टि ने ऐसा शृंगार किया है जग का

प्रेमी मन बोल रहे बोलो बोलो अब का

दूब – दूब, वृक्ष – वृक्ष, पंछी नहाए हैं

चेहरा भी खिला खिला लगता है नभ का

 

गीली गीली हवा हुई छूती है तन को

ठंडा - ठंडा एहसास होता है मन को

पलकों से वृष्टि झरे,  झरें  जैसे नैना

सारा श्रेय जाता है सावन के घन को

 

बिना भेदभाव के ये सबको नहलाता है

धरणी से खुलकर ये प्रेम जतलाता है

खुशियाँ ये देता है जग भर को भर के

जब जब ये धीरे धीरे मस्ती में आता है

 

पवन तिवारी

२३/०६/२०२१   

    

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