यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 25 मई 2022

तुम्हारी चेतना के स्वर

तुम्हारी  चेतना  के  स्वर  हमारे  उर  में  बजते  हैं

तुम्हारे सारे  सुंदर  स्वप्न  इन  आँखों  में  सजते  हैं

तुम्हें देखा हूँ जब से सारा कुछ अच्छा ही लगता है

अधर  अब  हर  घड़ी केवल तुम्हारा नाम जपते हैं

 

हुआ  है  प्रेम  जब  से  रेत   भी  सुंदर से  लगते हैं

तुम्हारे  स्वप्न   ऐसे  कि   सुबह   में  देर  जगते हैं

मुझे अपनी कुशलता ज्ञान पर अभिमान बिलकुल था

मगर  बच्चे  तुम्हारे  नाम  से  मुझे  रहते  ठगते  हैं

 

मेरे  व्यवहार  में  अब नम्रता कुछ बढ़ गयी लगती

मेरी मुझसे से ही अब तो ख़ूब छनती और है पगती

उधर  ठहरी  हुई  सी  ज़िंदगी  थोड़ी  उदासी  थी

आज - कल  लग रहा है ज़िन्दगी ये रेल सी भगती

 

खिले हैं सुमन खुशियों के कि गिनती कर नहीं सकता

नये  हैं  भाव  इच्छाएँ  कि  अब मैं  मर  नहीं सकता

प्रेम  ने  शक्ति  साहस  इस  तरह  से है  बढ़ाया कुछ

कि अब यमराज आयें तो भी ये उर डर नहीं सकता

 

पवन तिवारी

१७/०६/ २०२१


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