यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 25 मई 2022

चुप रहते हो तो चुप रहना

चुप  रहते  हो  तो  चुप रहना

गर लिखते  हो  लिखते रहना

मिलते  हो  तो  मिलते रहना

बातें  भी  कुछ   करते  रहना   

 

लिखना छोड़ दिया है अच्छा

मगर  सुनों  तुम पढ़ते रहना

झरने  सा  वो  उछल रहा है

तुम  नदिया  से  बहते रहना

 

वे  कहते  तुमको  चुप रहना

जहाँ   जरुरी  कहते   रहना

रोना  भी  आसान   नहीं है

मगर सदा  तुम हँसते रहना

 

पाँव  में   तेरे  चोट लगी है

धीरे ही  पर  चलते  रहना

बुरी  चीज  आकर्ष क होगी

किन्तु पवन तुम बचते रहना

 

 

वे  केवल   कहने  के  आदमी

त्तुम लिखते हो लिखते रहना

टूटे   लोग   हैं     होते अच्छे

मिल  जायें  तो  जुड़ते रहना

 

हर  मर्यादा   की   सीमा  है

कहाँ लिखा  है  सहते  रहना

आग  लगाना  उनका  धंधा

तुम दीपक से   जलते रहना

 

पवन तिवारी

१५/०६/२०२१   

 

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