यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 27 मई 2022

तुम तंदूरी खाने

तुम  तंदूरी   खाने   वाले   और  कोफ्ते   की   सब्जी

चोखे  के संग भात का खाना बोलो तुम क्या जानोगे

माना नगर  तुम्हारा अच्छा   सुविधाओं का ढेर लगा

लेकिन  अम्मा  के  चूल्हे  का  स्वाद  कहाँ से लाओगे

 

तुम  शक्कर  पारे  वाले  हो  कॉफी  कहवा  पीते  हो

लेकिन गुड़ वाली बुनिया  का स्वाद कहाँ से लाओगे

जानूँ शहर तुम्हारा समृद्ध   लोगों  की  है भीड़ बड़ी

मेरे गाँव की पुरूवाई को  बोलो  क्या  तुम  जानोगे 

 

कूलर  एसी  पंखे  सारे  साधन  के  तुम  स्वामी हो

लेकिन गाँव के पीपल वाली शुद्ध हवा क्या पाओगे

माना गाँव  बड़ा निर्धन है  तुम्हरे  वैभव   के  आगे

मगर गाँव की अल्हड़ ख़ुशबू नगर में तुम क्या पाओगे

 

प्रदूषणों  से  समझौता  कर   धन  की  कुर्सी पर बैठे

ऐसे में त्तुम गाँव के जैसा स्वास्थ्य भला क्या पाओगे

तुम्हरे पास अगर धन है  तो  खुशहाली हमरे संग है

हमें गँवारू कह लो कितना  पर कहकर क्या पाओगे

 

पवन तिवारी

०३/०७/२०२१       

 

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