जिन
पे हमको भरोसा कभी था नहीं
वो
भरोसे से विश्वास तक लह गये
जिन
पे विश्वास आरम्भ से था किया
वे
भरोसे के लायक भी ना रह गये
जिन
से संपर्क संवाद तक था नहीं
मुझको
जाने बिना जाने क्या कह गये
हम
भी धुन के थे पक्के सो चुप ही रहे
साधनारत
रहे सारा कुछ सह गये
अब
जो थोड़ा सधा गंध उड़ने लगी
जो
थे प्रतिकूल उनके भी मन ढह गये
सिद्ध
होने में अब भी सफर लम्बा है
चाहने
वाले बस भाव में बह गये
पवन
तिवारी
०३/०७/२०२१
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