यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 27 मई 2022

आज आया समय

आज आया समय कितना  ही  क्रूर है

आदमी   से   खड़ी   ज़िंदगी   दूर  है

आज नायक  ही सबसे उपेक्षित पड़ा

और खल बन के नायक ही मशहूर है

 

थोड़ी सी  ख्याति  में  आदमी  चूर है

वो ही है ख़ास और  शेष  सब घूर है

अंत सबका लिखा मृत्यु  के  हाथ से

फिर भी किस बात से जाने मगरूर है

 

सबको चाहिए  बदन  कैसा फितूर है

आत्मा  मूल   होकर  भी  मजबूर  है

प्रेम  का  रूप  धरकर  हवस  घूमती

ऐसा      वातावरण   कैसे   मंजूर है

 

हैं  सभी  जानते  किसका  क़सूर है

कैसे  बोलें  सभी  में  ये भरपूर है

ज़िन्दगी  भी  तरसने लगी ज़िन्दगी

आज - कल आदमीयत  हुई  रूर है

 

पवन तिवारी

४/०७/२०२१

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