आज
आया समय कितना ही क्रूर है
आदमी
से
खड़ी ज़िंदगी
दूर है
आज
नायक ही सबसे उपेक्षित पड़ा
और
खल बन के नायक ही मशहूर है
थोड़ी
सी ख्याति में आदमी
चूर है
वो
ही है ख़ास और शेष सब घूर है
अंत
सबका लिखा मृत्यु के हाथ से
फिर
भी किस बात से जाने मगरूर है
सबको
चाहिए बदन कैसा फितूर है
आत्मा
मूल होकर भी मजबूर है
प्रेम
का रूप धरकर हवस
घूमती
ऐसा
वातावरण
कैसे मंजूर है
हैं
सभी जानते किसका क़सूर है
कैसे
बोलें सभी में
ये भरपूर है
ज़िन्दगी
भी तरसने लगी ज़िन्दगी
आज
- कल आदमीयत हुई रूर है
पवन
तिवारी
४/०७/२०२१
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