रूप
की गति नैन तक केवल रही
नैन
की चाहत बदन तक ही रही
प्रेम
धीरे ही सही चलता रहा
रूह
की देहरी उसकी मंजिल रही
रूप
वाले रूप को ही छल गये
और
कुछ दिन में बदन भी ढल गये
प्रेम
का यौवन भी बढ़ता जा रहा
आते-आते
कितने दुःख भी टल गये
प्रेम
ना ही वस्तु ना ही द्रव्य है
प्रेम
तप है यज्ञ वाला हव्य है
प्रेम
भी है साधना जो सध सके
सबसे
पावन मन्त्र जैसा श्रव्य है
इसलिए
राधा किसन की बात है
कितना
पवन मीरा का ज़ज्बात है
रूप
वाले कैसे समझेंगे इसे
उनकी
मंजिल बस अंधेरी रात है
प्रेम
सबसे पावनी अभिव्यक्ति है
प्रेम
सम्बधों की सच्ची शक्ति है
प्रेम
की उदात्तता हम क्या कहें
प्रेम
से बढ़कर न कोई भक्ति है
पवन
तिवारी
३/०१/२०२१
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