यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

रूप की गति नैन तक केवल रही

रूप की गति नैन तक केवल रही

नैन की चाहत बदन तक ही रही

प्रेम  धीरे  ही  सही  चलता  रहा

रूह की देहरी उसकी मंजिल रही

 

रूप  वाले  रूप  को  ही  छल  गये

और कुछ दिन में बदन भी ढल गये

प्रेम का यौवन भी  बढ़ता  जा  रहा

आते-आते कितने दुःख भी टल गये

 

प्रेम ना ही वस्तु  ना ही द्रव्य है

प्रेम तप है यज्ञ  वाला हव्य है

प्रेम भी है साधना जो सध सके

सबसे पावन मन्त्र जैसा श्रव्य है

 

इसलिए राधा किसन की बात है

कितना पवन मीरा का ज़ज्बात है

रूप   वाले   कैसे   समझेंगे   इसे

उनकी मंजिल बस अंधेरी रात है

 

प्रेम सबसे पावनी अभिव्यक्ति है

प्रेम सम्बधों की सच्ची शक्ति है

प्रेम की उदात्तता हम क्या कहें

प्रेम से बढ़कर न कोई भक्ति है

 

पवन तिवारी

३/०१/२०२१

                                                                                                                                

 

 

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