जिन्हें
दुत्कारते थे उनके
जमाने आये
बड़ा
ख़ुश हूँ कि कुछ ऐसे दिवाने आये
वही
जो डांटकर अक्सर ही भगा देते थे
मज़े
की बात कि अब वो ही बुलाने आये
लुत्फ़
आ जाये थोड़ा और
गर्म खाने में
बनाया
जिसने है गर वो ही खिलाने आये
उरूज़
क्या है कद्र क्या है हैसियत क्या है
चल
के दुश्मन जो तुमसे हाथ मिलाने आये
अदब
से आँख जो हरदम ही झुकी रहती थी
चंद
सिक्के क्या मिले आँख
दिखाने आये
नया
ज़माना है सो कुछ भी यहाँ हो सकता
हमसे
सीखे हुए ही हमको सिखाने
आये
अदब
न छोड़ना हाथों को जोड़कर मिलना
क्या
पता अदब का बन्दा ही
बुलाने आये
पवन
तिवारी
०४/०१/२०२०
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