विडम्बना कैसी-कैसी
है दुख का ना कोई छोर है
राष्ट्र बना है जिनके
कारण उनका ना कोई और है
धरा को उलट-पुलट करके
के जो भरते उदर सभी का
उनकी ही अब बात
अनसुनी दुखता पोर ही पोर है
नारों में,खेतों
में, किनारों, में चर्चा उनकी
उनकी कोई किन्तु कभी
सरकार नहीं सुनती
असली देश गाँव में बसता
सबको यही बताते हैं
किन्तु किसानों की
मानव में होती नहीं कभी गिनती
किसानों की मेहनत
में हिस्सा देश भर का है
दावा अनाज पर उसके
जैसे अपने घर का है
मेहनत किसान की कमाई
किसी और की
उसकी ही मलाई में
उसका हिस्सा तर का है
इनकी मौत ख़ास नहीं,
खबर नहीं बनती है
नेता अभिनेता की प्रेस
में बड़ी छनती है
इनकी भी मौज मस्ती
प्रथम पृष्ठ पर छपती
टीवी वाली दुनिया तो
और ही कुछ गुनती है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१८/०८/२०२०
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