मैंने धीरे – धीरे ही मन को समझा
तुमने जल्दी-जल्दी ही धन को समझा
छोड़ मुझे तुम ही सुविधा के दल गये
इसीलिए हम दोनों के पथ बदल गये
काश चरित से मेरे तुम यारी करते
साथ मेरे दो चार कदम यदि डग भरते
घाव तुम्हारे ह्रदय पर कभी नहीं पड़ते
सच का आँचल यदि धीरे सेही धरते
दूर रहा हूँ सुविधाओं के रोग से
हुआ नहीं आकर्षित ढेरों भोग से
पथ जो बदला थोड़ा सा तुम कारण थे
किन्तु कभी भी नहीं किसी के चारण थे
लोभ में तुम थोड़ा-थोड़ा ही बिक गये
हमीं अकेले ध्येय लिए बस टिक गये
पहुँचा हूँ जो आज शिखर के भाल पर
ठहर गये हैं आँसू तुम्हरे गाल पर
कहा था तुमसे मन का सौदा मत करना
द्रव्य से पावन तन को मैला मत करना
सत्य का पथ दुर्गम है मगर जीत होगी
एक दिन समृद्धि तुम्हरी प्रबल मीत होगी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१६/०८/२०२०
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