दगा जो किया हूँ तो
प्रभु मुझे मार दें
आत्महत्या करने की
ज़रूरत पड़े ना
नैन जिससे लड़ गये
लड़ते ही रहें फिर
प्यार में ही मर
जायें कभी भी लड़ें ना
एक जिसके खातिर
मैंने जग भर को छोड़ दिया
उसने भी गैर खातिर
मेरा दिल तोड़ दिया
करके गुनाह बेगुनाही
चाहता है अब
दगा करके दगा को भी
बहुत खूब मोड़ दिया
हाथ मेरा चूमा उसने
गाल किसी और का
क्या जवाब देना अब
उसके इस तौर का
सच होके सामने भी ना
माने क्या कीजे
जमाना ही चल रहा दगे वाले दौर का
मुझे प्यार की उसको
दौलत की चाह थी
उसके होंठो पे हँसी मेरे पे आह थी
हम तो दीवाने ठहरे
पागल थे प्यार के
प्यार मेरी मंजिल थी
वो उसकी राह थी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
२२/०६/२०२०
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