यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 13 जून 2021

धीमे - धीमे

धीमे - धीमे

 

धीरे - धीरे बादल छँटते धीरे - धीरे छाते हैं

धीरे-धीरे शाम है ढलती प्रात भी धीरे आते हैं

धीरे होना भी है अच्छा धीरे एक सहजता है

धीरे-धीरे चलकर कछुए मंजिल को पा जाते हैं

 

धीमा होना बुरा नहीं है धैर्य भी है धीमा होना

धीमी आंच पे भोजन पकना कहलाता अच्छा होना

धीमे स्वर में गीत को गाना रूह तलक छा जाता है

धीमें स्वर में जो भी बोले कहलाता है गुण होना

 

धीरे – धीरे प्यार का बढ़ना अच्छा होता है

धीमे धीमे आग का जलना अच्छा होता है

धीमे का अपना महत्त्व है धीमे को मत कम समझो

धीमे - धीमे ख्याति का बढ़ना अच्छा होता है  

 

धीमा भी जीवन का हिस्सा धीमा कितना कुछ जीवन में

कितनी बातें चलती रहती धीमे धीमे ही मन में

जग को थोड़ा समझ हैं पाते उम्र जो चलती है धीमे

धीमे - धीमे आओ टहलें जीवन के सुंदर वन में

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

२६/०७/२०२० 

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