दुःख के सारे बंधन
तोड़ें
आओ हर्ष से नाता
जोड़ें
पीछा करता दुःख
बेशरम ये
आओ प्रेम गली रथ
मोड़ें
मित्रों से दुःख सदा
है डरता
उनका ये आदर भी करता
मित्रों से उर खोलें
रखें
ऐसे में दुःख पानी
भरता
हँसी से भी दुःख भय
खाता है
निकट न ही उसके आता
है
अधरों पर जो हँसी
रखोगे
फिर दुःख दूर ही रह
जाता है
दुःख के दुश्मन भी
सपने हैं
सपने देखो वो अपने
हैं
जो सपनों को सच करते
हैं
उन्हें देखते दुःख
कंपने हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
२५/०७/२०२०
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