भटक रहा हूँ मुझे
प्रेम की तलाश है
एक सच्चे साथी की ही
मुझको आस है
बहुत सारी बातें हैं
इच्छाएं हैं अनंत
प्रेम भी तो पावन है
उदात्त प्यास है
बदन की ही खुशबू में
हर कोई मस्त है
उर के द्वार जाने से
पहले ही पस्त है
चारो तरफ भोग दिखे
जोग कहीं लुप्त है
यही देख-देख पुण्य
प्रेम भी तो लस्त है
ऐसे समय में भी
प्रेम खोजता हूँ मैं
थोड़ा-थोड़ा भटकने पर
खुद को रोकता हूँ मैं
उर को समझाता हूँ
नहीं समझता है पर
रुकता नहीं है
किन्तु फिर भी रोकता हूँ मैं
थोड़ा सा प्रेम चखा
धोखा बड़ा मिला
नाजुक से प्रेम से
झटका कड़ा मिला
आगे बढ़ा जरा तो छल
कपट झूठ मिले
फिर भी ये दिल अपने
जिद पे अड़ा मिला
पवन तिवारी
संवाद –
७७१८०८०९७८
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