जिसके संग सपने थे
देखे
उसने ही सपनों को
मारा
वारा अपना जिस पर सब
कुछ
उसके ही मैं छल से
हारा
जो खुशियाँ उसे देना
चाहा
उसका ही वो क़त्ल कर
दिया
जिस हिय में था
खुशियाँ रोपा
वो नैनों में आँसू
भर दिया
हत्या जब विश्वास की
होती
एक – एक धड़कन है
रोती
प्रतिपल रोम कराह
रहे हैं
काश, कि विष के बीज
न बोती
प्रेम में जिसने दगा
किया है
जीवन भर वो दुःख ही
सिया है
दुःख का सुख बस
क्षणिक रहा है
ऐसा तो घुट - घुट के
जिया है
पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
२२/०७/२०२०
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