सुबह-सुबह में गाती चिड़िया ख़ूब निखरती है।
धीरे - धीरे दबे कदम से भोर पसरती है
झुर झुर इठलाती सी डोलती हवा चली
आये
सूरज की किरणें हँसती हैं, धूप बिखरती हैं
जीवन मुस्का देता जब जब सुबहें आती
हैं
सूरज की लाली में कलियां गुनगुनाती हैं
सिमसिम सी माटी थोड़ी दुलराने है लगती
सुबह फुदक कर चूँ चूँ जब गौरैया गाती हैं
ओस की बूदें जब फूलों का तन मन
चूमें हैं
ग्राम देवता भोर से ही खेतों में घूमें हैं
सुबह की किलकारी जग को हौले से जगाए
जब
हवा के संग संग खेत की सारी फसलें
झूमें हैं
भोर के आते ही सबकी गिरहस्ती चल
पड़ती
चूल्हों में भी धीरे - धीरे आग है तब जलती
चहल-पहल से आपा-धापी को जीवन बढ़ता
सुबह से चलकर शाम को थककर धूप है जब
ढलती
पवन तिवारी
सम्वाद – 7718080978
13/07/2020
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