यूँ ही बेकाम हाल लो
तो ज़रा
आते–जाते कभी मिलो
तो ज़रा
बात से बात सुलझ
जाती है
बात में बात कोई हो
तो ज़रा
जड़ का तगमा उछाल सकते
हो
बात मानों मेरी हिलो
तो ज़रा
बिना मौसम भी मज़ा
आता है
सुनो बे-मौसम भी
खिलो तो ज़रा
जीतने का मज़ा लेना
है अगर
हारने का भी मज़ा लो
तो ज़रा
मज़ा ख़याल का लेना है
अगर
चलते-चलते पवन रुको तो
ज़रा
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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