मिलूँ तुमसे कहानी बुन रहा हूँ
तुम्हारे बिन सदा
गुमसुम रहा हूँ
कि बेहतर चाह ने
तुमको भी छीना
कि तब से सर अकेले धुन रहा हूँ
बहारों को जो मारा ठोकरें तो
जगह फूलों के कांटे चुन रहा हूँ
हुजूर आप जी साहब सभी था
आप ही के लिए बस तुम
रहा हूँ
मैं मरना चाहता
हूँ सरहद पर
कोई तरकीब निकले गुन
रहा हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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