माना कि तुम शरीफ हो अंदाज अल्हदा है
पर उसकी जिन्दी भी
इक अच्छा नमूना है
निंदा कि या प्रशंसा अब दो ही रास्ते हैं
निष्पक्षता नादानी या कह
दूँ मूर्खता है
भूखों मरना है तो किसान ही रह जाओ
भरपूर मजे के
लिए तो संसद बना है
बाज़ार के इस दौर में
साहित्य की बातें
साहित्य के सम्राट
का ही जूता पता है
अन्नदाता जय किसान
का नारा ही अर्थहीन
किसान तो आज भी यहाँ पूस की रात है
छोड़ो राजनीति
कहूँगा
तो बुरा लगेगा
राजनीति चौराहे पर
नगरवधू की बात है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८८
अणु डाक –
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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