इधर उधर की तो बहुत
हुई आओ अब दिल की मैं बताता हूँ
ग़ज़ल तो बहुत सुनी छोड़ो ना आओ अब ज़िंदगी सुनाता हूँ
लोगों के बारे में
तुम्हारी राय बड़ी उम्दा है और खुद के बारे में
कभी सोचा नहीं ठीक
है कोई बात नहीं चलो मैं तुम्हें बताता हूँ
ये जो तुम खाली पेट
गरजते हो ना कितना सच है सोचता हूँ
पर जो भी हो कुछ तो
है तुम में बस यही अनुमान लगाता हूँ
ये जो अदब पर बर्बाद
हो रहे जानता हूँ आता हूँ मशविरा लिए
मगर हिम्मत नहीं होती
और बिन कहे चुपचाप चले जाता हूँ
ये गीत ये
लच्छेदार भाषण ये ठुमकते व्यंग्य और मुस्काती ग़ज़ल
इनसे सब से बाहर निकलो आओ नदी के उस पार कुछ दिखाता हूँ
सुना है कि पवन तुम
लोगों से अक्सर ही बहुत मिलते हो सच है
तो सुनो ना मेरे पास आओ जरा तुमको आज तुमसे ही मिलाता हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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