यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

फूल गेंदा की प्यारी


फूल गेंदा की प्यारी सी क्यारी लगो
अपने बचपन  सी मासूम यारी लगो
तुमको देखूँ तो अधरों पर आये ख़ुशी
तुम  बसंती  हवा  सी  दुलारी लगो

फूल  सरसो  के जैसी पियारी लगो
दो चोटी में तुम लडकी न्यारी लगो
तुम जो चलती हो अल्हड सी यूं झूम के
पुष्प की वाटिका से भी प्यारी लगो

ये जो लट उड़ के माथे पे आ जाती है
लहर कर  बाजुओं पर जो छा जाती है
फिर झटकती हो जब तुम अदा से उसे
एक  मदहोशी  हम पर वो ढा जाती है

तुम  कुएं  कि  मुझे ठंडा पानी लगो
सुमन  में  तुम  मुझे रात रानी लगो
सोचता  हूँ  अकेले  में जब भी कभी
मुझको  मीरा सी पावन दीवानी लगो

जब भी  देखूँ  तुम्हें  होता  संतोष है
मेरे  अन्तः का मिट जाता सब रोष है
तुम हो  अनुरक्ति  की  पावन आत्मा
वासनाओं  का  मिट जाता सब दोष है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail   


बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

बाबू जी सीधे – सादे देहाती रहे


बाबू  जी  सीधे – सादे  देहाती रहे
अम्मा के वे सदा सच्चे साथी रहे
अपनी माटी को माथे सजाए हुए
बाँचते सबके सुख दुख की पाती रहे


बिन लपेटे सदा बात कहते रहे
कष्ट सारे अकेले ही सहते रहे
परवरिश हमरी अच्छी हो इसके लिये
थोड़ा - थोड़ा अकेले ही ढहते रहे


एक  कुर्ते  में  सालों  गुजारा  किये
आधे  चद्दर   में  पैर  पसारा   किये
उनको जूता कभी ना मयस्सर हुआ
हमरे जूते को हँसकर निहारा किये


हमको  डिप्टी  क्लटर  बनाने चले
हमरे खातिर ही खेती गंवाने चले
बाग भी बिक गयी ना मिली नौकरी
हमरे खातिर ही गंगा नहाने चले


बाबूजी  वाले   सपने   खड़े    हो  गए
देखते – देखते   हम    बड़े    हो  गए
उनके सपनों को कविता में ले आये हम
मान संस्कृति के उनके घड़े हो गए


धन्य  ही हो  गया छू के  पावन चरण
आप के आचरण का किया अनुकरण
उसका परिणाम पावन हुआ इस तरह
धन्य  हो  ही  गया  मेरा  भी आचरण


हम कलक्टर नहीं फिर भी कवि  हो गए
उनकी देसजता  की सच्ची छवि  हो गए
ना  कलक्टर हुआ उनको  दुख अब नहीं
देशी  माटी  के  बेटे  भी  रवि हो गए


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com


मैं तो जड़ था


मैं तो जड़ था मिली तुम तो जंगम हुआ
राग   अनुराग  का  उर  में  उद्गम  हुआ
मेरी  अभिलाषा   को  मान   तुमने  दिया
इसलिए   प्रेम   का   पुण्य   संगम  हुआ

प्रेम जड़ में भी चेतन को ला सकता है
प्रेम  से  आदमी कुछ भी पा सकता है
तुम  से मिलकर ही मैंने ये जाना प्रिये
प्रेम  से विकट स्थिति भी ढा सकता है

क्या था मैं और अब क्या से क्या हो गया
प्रेम  के  लोक  में  आकर  मैं खो गया
सच  कहूँ  तो  अभी  मैं  हुआ  आदमी
प्रेम  के  अस्त्र  से  पाप  सब  धो गया

प्रेम  तेरा  भी  है  प्रेम  मेरा   भी  है
प्रेम  जीवन  का  सुंदर  सा घेरा भी है
प्रेम  बिन  कल्पना  ज़िन्दगी  की नहीं
प्रेम  जीवन  का  पावन  सवेरा  भी है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

क्या प्रशंसा करूँ


क्या  प्रशंसा  करूँ  तुम अकथ्य  प्रिये
प्रेम  पावन  है  अपना ये  तथ्य प्रिये
कोई   कारण   सफाई      देनी   हमें
प्रेम  अपना  समर्पित  है  सत्य  प्रिये

प्रेम   का  मूल  तो  मात्र  विश्वास  है
प्रेम के  श्वाँस में प्रभु का  निवास  है
बस   समर्पण    विश्वास  स्थिर  रहे
सारे  जीवन  में  उल्लास  का वास  है

मिले जो भी  सहज उसको स्वीकार लो
प्रेम  भी  धर्म  है  ह्रदय  में धार  लो
काटना  है  नहीं   जीवन  जीना  हमें
चित्त  में  प्रेम  को समझ ओंकार लो

प्रेम का उर में जब से  ये चढ़ मद गया
अपना  जीवन  गृहस्ती में  यूँ नध गया
हम  वसंत  से  खिलते  हुए   जा  रहे
प्रेम क्या सध गया  सारा जग सध गया

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com


मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

क्या संबोधित करूँ


क्या संबोधित करूँ तुम कहो सुलोचना
उर  कहे   करता   रहूँ  मैं  अर्चना
तुम हो अनुपम करूँ क्या मैं वर्णन प्रिये
देखते  ही  शिथिल  हो  गयी चेतना

प्रति प्रहर शिव से तुम्हारी करूँ प्रार्थना
बिन तुम्हारे  ही हो जाऊँ मैं व्यर्थ ना
मुझको अपना  बनाने का वर दो प्रिये
प्रेम  में  इतनी  सी  मात्र अभ्यर्थना

प्रेम कैसा जो सुधि का न कर ले हरण
उर  पखारे  समर्पित  हो उसके चरण
जो  कुछ  भी  हुआ  ये  मेरे साथ है
प्रेम  सच्चा  यही  कर लो  अनुकरण

तुम  मिली जो हमें हम हुए सार्थक
तुम ही जीवन की हो सच्ची प्रदर्शक
मिला क्या प्रेम सब अर्थ ही मिल गये
शेष  अभिलाषाएँ  हो गयी निरर्थक


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

सोहदागिरी मंहंग परिजाई - अवधी रचना


अबहिं उमरि पढ़ले कै हउवै,  कैल्या मन से पढ़ाई बाबू
नाहित गारा - माटी करबा चली न फिर इ ढिठाई बाबू

सोहदागिरी मंहंग परिजाई जुल्फी जिन  सोहराई बाबू
तोहरो घरे बहिनि बिटिया हइं होई जाई रुसवाई बाबू

रोज–रोज कै नुक्ता चीनी, गइल न तोहर ढींठाई बाबू
कहिओ चढ़ी गइला जौ हत्थे , कोई बहुत कुटाई बाबू

अबहूँ खइरि है कहल जात है कैल्या निज सुधराई बाबू
साईत बिगड़ि गइल जौ कहिवो करबा माई - माई बाबू

हरदी लगिगै छोड़ लड़िकपन , आगे करा सोचाई बाबू
नाहित  मेहरी  छोड़ी के जाई , होई बहुत हँसाई बाबू

गलती कइल्या मानिल्या वोके अइसे जिन गुर्राई बाबू
करम गती भोगही के पड़ी इहाँ , नाहीं बाएँ जाई बाबू

अइसै  इज्जति  नाय मिलैले, होले  नाय  बड़ाई बाबू
छोट - बड़े कै इज्जति करबा  करमै मान दियाई बाबू

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

घर दुआरी खेती बारी - अवधी रचना



घर   दुआरी , खेती  बारी , सगरो रिस्तेदारी   बाबू
माँगै  ख़ूब पसीना जमिके  औ दिल में खुद्दारी  बाबू

बाबू भइया ,  दीदी  बहिनी प्रेम से बसै पियारी बाबू
नेह, दुलार मिली सबही कै, मन के रखा पुजारी बाबू

यनकै  उख्खुड़ि , वनकै चन्ना काका कै तरकारी बाबू
ई कुलि लच्छन ठीक नाय है चोरी अउर चकारी बाबू

एके द्वापर जिनि समझ्या बन्यौ न तू गिरधारी बाबू
 
कलयुग   मैरीकॉम  हइं , जुल्फ़ी  उठी  उखारी बाबू

सबकै आपन चीज कीमती, कसम तुन्है महतारी बाबू
एक तुरुनवों  हीरा हउवै , समझा  मत सरकारी बाबू

अपने  मेहनत से चमकावा  आपन खेती बारी बाबू
किसमति कोसले कुछ ना होई, केतनो देबा गारी बाबू

कपड़ा-लत्ता से जिनि आंक्या केहु कै इज्ज्तदारी बाबू
कोटि-पैंट में भी मिलि जानै एक-से-एक भिखारी बाबू


पवन तिवारी
संवाद ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com