फूल गेंदा की प्यारी
सी क्यारी लगो
अपने बचपन सी मासूम यारी लगो
तुमको देखूँ तो
अधरों पर आये ख़ुशी
तुम बसंती हवा सी दुलारी लगो
फूल सरसो के
जैसी पियारी लगो
दो चोटी में तुम
लडकी न्यारी लगो
तुम जो चलती हो
अल्हड सी यूं झूम के
पुष्प की वाटिका से
भी प्यारी लगो
ये जो लट उड़ के माथे
पे आ जाती है
लहर कर बाजुओं पर जो छा जाती है
फिर झटकती हो जब तुम
अदा से उसे
एक मदहोशी हम पर वो ढा जाती है
तुम कुएं कि
मुझे ठंडा पानी लगो
सुमन में तुम
मुझे रात रानी लगो
सोचता हूँ अकेले
में जब भी कभी
मुझको मीरा सी पावन दीवानी लगो
जब भी देखूँ तुम्हें
होता संतोष है
मेरे अन्तः का मिट जाता सब रोष है
तुम हो अनुरक्ति की पावन
आत्मा
वासनाओं का मिट
जाता सब दोष है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail
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