बाबू जी सीधे – सादे देहाती रहे
अम्मा के वे सदा सच्चे साथी रहे
अपनी माटी को माथे सजाए हुए
बाँचते सबके सुख दुख की पाती रहे
बिन लपेटे सदा बात कहते रहे
कष्ट सारे अकेले ही सहते रहे
परवरिश हमरी अच्छी हो इसके लिये
थोड़ा - थोड़ा अकेले ही ढहते
रहे
एक कुर्ते में सालों गुजारा किये
आधे चद्दर में पैर पसारा किये
उनको जूता कभी ना मयस्सर हुआ
हमरे जूते को हँसकर निहारा किये
हमको डिप्टी क्लटर बनाने चले
हमरे खातिर ही खेती गंवाने चले
बाग भी बिक गयी ना मिली नौकरी
हमरे खातिर ही गंगा नहाने चले
बाबूजी वाले सपने खड़े हो गए
देखते – देखते हम बड़े हो गए
उनके सपनों को कविता में ले आये हम
मान संस्कृति के उनके घड़े हो गए
धन्य ही हो गया छू के पावन चरण
आप के आचरण का किया अनुकरण
उसका परिणाम पावन हुआ इस तरह
धन्य हो ही गया मेरा भी आचरण
हम कलक्टर नहीं फिर भी कवि हो गए
उनकी देसजता की सच्ची छवि हो गए
ना कलक्टर हुआ उनको दुख अब नहीं
देशी माटी के
बेटे भी रवि
हो गए
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें