मैं तो जड़ था मिली
तुम तो जंगम हुआ
राग अनुराग का उर में उद्गम हुआ
मेरी अभिलाषा को मान तुमने दिया
इसलिए
प्रेम का पुण्य संगम हुआ
प्रेम जड़ में भी
चेतन को ला सकता है
प्रेम से आदमी
कुछ भी पा सकता है
तुम से मिलकर ही मैंने ये जाना प्रिये
प्रेम से विकट स्थिति भी ढा सकता है
क्या था मैं और अब
क्या से क्या हो गया
प्रेम के लोक में आकर
मैं खो गया
सच कहूँ तो
अभी मैं हुआ
आदमी
प्रेम के अस्त्र
से पाप सब धो गया
प्रेम तेरा भी
है प्रेम मेरा
भी
है
प्रेम जीवन का
सुंदर सा घेरा भी है
प्रेम बिन कल्पना
ज़िन्दगी की नहीं
प्रेम जीवन का
पावन सवेरा भी है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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