क्या संबोधित करूँ
तुम कहो सुलोचना
उर कहे करता रहूँ मैं
अर्चना
तुम हो अनुपम करूँ
क्या मैं वर्णन प्रिये
देखते ही शिथिल
हो गयी चेतना
प्रति प्रहर शिव से
तुम्हारी करूँ प्रार्थना
बिन तुम्हारे ही हो जाऊँ मैं व्यर्थ ना
मुझको अपना बनाने का
वर दो प्रिये
प्रेम में इतनी
सी मात्र अभ्यर्थना
प्रेम कैसा जो सुधि
का न कर ले हरण
उर पखारे समर्पित हो उसके चरण
जो कुछ भी हुआ ये मेरे साथ है
प्रेम सच्चा यही कर
लो अनुकरण
तुम मिली जो हमें हम हुए सार्थक
तुम ही जीवन की हो
सच्ची प्रदर्शक
मिला क्या प्रेम सब
अर्थ ही मिल गये
शेष अभिलाषाएँ हो गयी निरर्थक
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें