अबहिं उमरि पढ़ले कै हउवै,
कैल्या मन से पढ़ाई बाबू
नाहित गारा - माटी
करबा चली न फिर इ ढिठाई बाबू
सोहदागिरी मंहंग
परिजाई जुल्फी जिन सोहराई बाबू
तोहरो घरे बहिनि
बिटिया हइं होई जाई रुसवाई बाबू
रोज–रोज कै नुक्ता
चीनी, गइल न तोहर ढींठाई बाबू
कहिओ चढ़ी गइला जौ
हत्थे , कोई बहुत कुटाई बाबू
अबहूँ खइरि है कहल
जात है कैल्या निज सुधराई बाबू
साईत बिगड़ि गइल जौ कहिवो
करबा माई - माई बाबू
हरदी लगिगै छोड़
लड़िकपन , आगे करा सोचाई बाबू
नाहित मेहरी
छोड़ी के जाई , होई बहुत हँसाई बाबू
गलती कइल्या मानिल्या
वोके अइसे जिन गुर्राई बाबू
करम गती भोगही के
पड़ी इहाँ , नाहीं बाएँ जाई बाबू
अइसै इज्जति नाय मिलैले, होले नाय बड़ाई बाबू
छोट - बड़े कै इज्जति
करबा करमै मान दियाई बाबू
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें