घर दुआरी , खेती बारी ,
सगरो रिस्तेदारी बाबू
माँगै ख़ूब
पसीना जमिके औ दिल में खुद्दारी बाबू
बाबू भइया , दीदी बहिनी
प्रेम से बसै पियारी बाबू
नेह, दुलार
मिली सबही कै, मन के रखा पुजारी बाबू
यनकै उख्खुड़ि , वनकै चन्ना काका कै
तरकारी बाबू
ई कुलि लच्छन ठीक नाय है चोरी अउर
चकारी बाबू
एके द्वापर जिनि समझ्या बन्यौ न तू गिरधारी बाबू
कलयुग मैरीकॉम
हइं , जुल्फ़ी उठी उखारी
बाबू
सबकै आपन चीज कीमती, कसम तुन्है
महतारी बाबू
एक तुरुनवों हीरा हउवै , समझा मत सरकारी बाबू
अपने मेहनत से चमकावा आपन खेती – बारी बाबू
किसमति कोसले कुछ ना होई, केतनो देबा
गारी बाबू
कपड़ा-लत्ता से जिनि आंक्या केहु कै
इज्ज्तदारी बाबू
कोटि-पैंट में भी मिलि जानै एक-से-एक
भिखारी बाबू
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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