देख कर उसको मैं गीत लिखने लगा
प्यार के नाम पर गीत बिकने लगा
वह भी सुनती रही दिल लगाकर मुझे
उसकी खातिर मैं मंचों पे दिखने लगा
मेरे हर छन्द पर वह बिखरने लगी
मेरी कविता में ढल के निखरने लगी
उसको यह सब पता ही न थी बावरी
मेरी हर रचनाएँ उस पर सँवरने लगी
मुझको सुनने की खातिर वो आती रही
रात भर जाग कर गुनगुनाती रही
मित्र जब भी मिलें उनसे वो पूछती
मिल भी जाती तो बस शरमाती रही
उसको बस देखकर ही मैं कवि हो गया
उसकी नजरों में मैं दिल का रवि हो गया
वह मेरी चाँदनी
उससे कैसे कहूँ
मैं रहा मैं नहीं उसका
छवि हो गया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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