यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 28 जुलाई 2022

आज - कल सोचते

आज - कल  सोचते  ही  रहता हूँ

कुछ  नहीं  और ये  ही  करता हूँ

ज़िन्दगी  बीत  रही  है  फिर भी

सच में क्या रोज़ थोड़ा मरता हूँ

 

सच में चाहत  बहुत है करने की

वज़ह इतनी  भी  नहीं डरने की

तो भी कर पाता नहीं जो करना

फिर  भी चाहत है रंग भरने की

 

इसी ज़िद से  मैं थोड़ा ज़िन्दा हूँ

बिना  पर उड़ता  सा परिंदा हूँ

अपनी शर्तों पे जीने का है मजा

नहीं, बिलकुल  नहीं, शर्मिंदा हूँ

 

अपने ढंग से  जो तुम्हें जीना है

ऐसे में  कुछ  गरल तो पीना है

वहीं से निकलेगा अमृत भी तो

तुम पे  निर्भर  है  कैसे पीना है

 

 

पवन तिवारी

०२/०५/२०२२

 

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