मिले
हैं वर्षों बाद तो कैसा लगता है
असमंजस
तो है पर अच्छा लगता है
ढेरों
प्रश्न
हैं , पीड़ाएं हैं , बातें हैं
सब
कुछ पाऊँगा कि ऐसा लगता है
हाँ,
कहने में वक़्त लगेगा लगता है
पीड़ा
को कहना हो वक़्त तो लगता है
उसमें
भी यदि बीच बीच में प्रश्न कठिन हों
सम्भल
सम्भल कर कहना वक़्त तो लगता है
बिछड़ों
से मिलना अपनापन लगता है
वही
पुराना प्यार पनपने लगता है
वर्षों
बाद मिले तो फिर से याद आया
बीते
दिन भी अच्छे ही थे
लगता है
अपने
थे जो अपने होंगे लगता है
पेड़,
गली, चौराहे,
वैसे लगता है
असहजता,
अनजानापन है दूर हुआ
गये
सभी पहचान हमें अब लगता है
पवन
तिवारी
२९/१०/२०२१
(कोरोना
काल के डेढ़ साल बाद मुंबई लौटने पर लिखी गयी कविता )
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