कितना
कुछ एक साथ घटता है
कोई
बस एक बात रटता है
वो
एक बात बड़ी होगी बहुत
जिससे
हिय चाह के न हटता है
एक आँधी उजाड़ देती है
ज़िन्दगी
को पछाड़ देती है
फिर
भी मुस्काके बढ़ती है आगे
धूल
की तरह झाड़ देती
है
फिर
भी दुःख के निशाँ रहते हैं
यादों
के दुःख सदा ही सहते हैं
बाहरी
दुनिया से हँसते मिलते
खुद
से तो रोज दुःख को कहते हैं
यही
जीवन है मान लेते हैं
जैसे
हम सब ही जान लेते हैं
आदमी
हाड़ माँस के हैं मगर
पाते
हैं सब जो ठान लेते हैं
पवन
तिवारी
०८/०१/२०२२
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