यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

मिलने की कसमसाहट

बिछड़ने की कसमसाहट तो होती है

किन्तु,मिलने पर कसमसाहट होना !

है, ज़रा-ज़रा अज़ीब, पर है !

इस शहर में कल ही आया हूँ

हम दोनों में एक दूसरे को लेकर

एक कसमसाहट है !

पहले ऐसा कभी नहीं हुआ !

इसकी सड़कों पर चलते हुए

लगता है, ये मुझे भूल गयी हैं .

ये मुझे देख रही है, परिचित की तरह,

मेरा मन सोच रहा था ,

बहुत बदल गया होगा, बीते सवा सालों में !

परन्तु, कुछ नहीं बदला . फिर भी

बहुत कुछ बदल गया .

इतना कि हमें लगा ही नहीं

कुछ बदल गया.

मुझे लगा, मैं बहुत कुछ,

 इस शहर के बारे में भूल गया हूँ.

इसलिए! यहाँ की सड़कों, गलियों

चौराहों, बस स्थानकों और

बाज़ारों से होकर

कई - कई बार गुज़रा तो,

पता चला मुझे सब याद है और

ये भी लगा कि वे भी मुझे लेकर

मेरी तरह ही कसमकस में थे .

वे भी यही सोचकर चुप थे कि

कहीं मैं तो उन्हें नहीं भुल गया.

परन्तु, मिलने से भ्रम दूर हो गया.

इस महामारी ने हमें तेईस वर्षों में

पहली बार, इतने लम्बे समय के लिए

एक दूसरे से किया दूर!

इस अट्ठारह महीने पन्द्रह दिन की

कसमसाहट तो होनी ही थी.

अपने नगर मुंबई की कसमसाहट !

 

पवन तिवारी

२९/१०/२०२१

(सुबह ६ बजे,मुंबई पहुंचते ही )

 

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