मित्रों दीपावली शब्द दीप+आवली से बना है।आवली का अर्थ पंक्ति होती है अर्थात
दीपों की पंक्ति। यह "प्रकाश का त्योहार" शरद ऋतु में हर वर्ष कार्तिक
मास की अमावस्या को मनाया जाता है।यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की
विजय को दर्शाता है।
देश भर में
मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से
अत्यधिक महत्व है। इसे पुराणों में दीपदान कहा गया है।लोग दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश
की ओर जाइए’ इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बंदी
छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना
जाता है कि दीपावली के दिन ही अयोध्या प्रभु श्री रामचंद्र जी अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।अयोध्यावासियों
का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री प्रभु राम के स्वागत
में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। भरत के नेत्रित्व में पूरे नगर को सजाया
गया। ऐसा पद्मपुराण में लिखा है।
मित्रों/पाठकों तब से प्रतिवर्ष कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठती है दीपावली के रूप
में।
स्कंध पुराण के वैष्णव खण्ड में दीपावली के
सन्दर्भ में एक दूसरी कथा है। जिसमें यमराज जी अपने दूतों से कहते हैं- कि कार्तिक
अमावस्या के दिन ही वामन रूप धारणकर तीन दिनों में तीन पग बलि से भगवान विष्णु जी
ने लिया था। इसलिए बलि ने विष्णु भगवान् से वर माँगा कि अमावस्या से तीन दिनों तक
प्रतिवर्ष मेरा राज्य हो। उस समय जो मनुष्य दीपदान करे।उसके घर जाकर आप की पत्नी लक्ष्मी
निवास करें।तब से लोग समृद्धि के लिए दिए जलाते हैं।
दीपावली
के संदर्भ में पद्मपुराण कहता है कि त्रयोदशी से भाई दूज तक दीपक जलाना चाहिए।घर
में,रसोई में, द्वार पर,पेड़ के नीचे, नदी के किनारे,गौशाला में, ब्राह्मण व् भूखे
को भोजन कराना फलदायी होता है।
वहीं दीपावली
के बारे में स्कंध पुराण कहता है कि त्रयोदशी को प्रदोषकाल में यमराज के लिए दीपक
जलाने और नैवेद्य चढाने से अकाल मृत्यु नहीं होती।चतुर्दशी को काले एवं चितकबरे
कुत्ते को दीपदान दें एवं यम को जल चढ़ाएं।दीपावली के दिन को प्रातः स्नान कर देवों
और पितरों की पूजा करें. इस दिन बालकों एवं रोगियों के सिवा किसी को भोजन नहीं
करना चाहिए. घर में,द्वार पर मार्ग में,नदी के तट पर, गौशाला रसोई,स्नानागार आदि
में दीपक जलाना चाहिए.प्रदोष के समय लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।कमल के फूलों पर
लक्ष्मी जी को आसन दें..जायत्री,लवंग,इलायची,कपूर, गौ के दूध शक्कर से बना लड्डू
लक्ष्मी जी को चढ़ाना चाहिए. इससे घर में सदैव लक्ष्मी जी का निवास रहता है।दीपावली
के दिन नये वस्त्र धारण कर ब्राह्मण और भूखे को भोजन कराएँ।मदिरा,हिंसा,परस्त्री
गमन,विश्वासघात,चोरी ये पञ्च कर्म से दूर रहें।
भाई दूज के दिन सगी बहन के घर जाकर उसका सम्मान
करें और उसके हाथ का बना भोजन करें। जिनकी सगी बहन नहीं है वे किसी रिश्ते की बहन
के यह जाकर उसके हाथ से बनें भोजन को करें। उसकी पूजा करें, वस्त्र आदि दान दें.ऐसा
करने से वर्ष भर कष्टों से मुक्त रहेंगे। भाईदूज के दी दिन यमराज ने बहन यमुना के घर भोजन किया
था। इसीलिये इसे यमदुतीय कहते हैं।इस दिन जो व्यक्ति यमुनाजी में स्नान करता है
उसकी अकाल मृत्य नहीं होती।
ऐसा
करने से वर्ष भर कष्टों से मुक्त रहेंगे. भाईदूज के दी दिन यमराज ने बहन यमुना के घर भोजन किया
था. इसीलिये इसे यमदुतीय कहते हैं।इस दिन जो व्यक्ति यमुनाजी में स्नान करता है
उसकी अकाल मृत्य नहीं होती।
ऐसा
करने से वर्ष भर कष्टों से मुक्त रहेंगे. भाईदूज के दी दिन यमराज ने बहन यमुना के घर भोजन किया
था. इसीलिये इसे यमदुतीय कहते हैं।इस दिन जो व्यक्ति यमुनाजी में स्नान करता है
उसकी अकाल मृत्य नहीं होती।
उसके घर जाकर आप की पत्नी लक्ष्मी
निवास करें।तब से लोग समृद्धि के लिए दिए जलाते हैं।
दीपावली
के संदर्भ में पद्मपुराण कहता है कि त्रयोदशी से भाई दूज तक दीपक जलाना चाहिए।घर
में,रसोई में, द्वार पर,पेड़ के नीचे, नदी के किनारे,गौशाला में, ब्राह्मण व् भूखे
को भोजन कराना फलदायी होता है।
वहीं दीपावली
के बारे में स्कंध पुराण कहता है कि त्रयोदशी को प्रदोषकाल में यमराज के लिए दीपक
जलाने और नैवेद्य चढाने से अकाल मृत्यु नहीं होती।चतुर्दशी को काले एवं चितकबरे
कुत्ते को दीपदान दें एवं यम को जल चढ़ाएं।दीपावली के दिन को प्रातः स्नान कर देवों
और पितरों की पूजा करें. इस दिन बालकों एवं रोगियों के सिवा किसी को भोजन नहीं
करना चाहिए।घर में,द्वार पर मार्ग में,नदी के तट पर, गौशाला रसोई,स्नानागार आदि
में दीपक जलाना चाहिए.प्रदोष के समय लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।कमल के फूलों पर
लक्ष्मी जी को आसन दें।जायत्री,लवंग,इलायची,कपूर, गौ के दूध शक्कर से बना लड्डू
लक्ष्मी जी को चढ़ाना चाहिए. इससे घर में सदैव लक्ष्मी जी का निवास रहता है।दीपावली
के दिन नये वस्त्र धारण कर ब्राह्मण और भूखे को भोजन कराएँ।मदिरा,हिंसा,परस्त्री
गमन,विश्वासघात,चोरी ये पञ्च कर्म से दूर रहें।
भाई दूज के दिन सगी बहन के घर जाकर उसका सम्मान
करें और उसके हाथ का बना भोजन करें। जिनकी सगी बहन नहीं है वे किसी रिश्ते की बहन
के यह जाकर उसके हाथ से बनें भोजन को करें। उसकी पूजा करें, वस्त्र आदि दान दें।ऐसा
करने से वर्ष भर कष्टों से मुक्त रहेंगे।भाईदूज के दी दिन यमराज ने बहन यमुना के घर भोजन किया
था।इसीलिये इसे यमदुतीया भी कहते हैं।इस दिन जो व्यक्ति यमुनाजी में स्नान करता है
उसकी अकाल मृत्य नहीं होती।
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