यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

मेरे बारे में कहता रहे

मेरे  बारे  में   कहता   रहे   कोई  कुछ

उससे  होता  नहीं  है  बुरा  मेरा  कुछ

उनकी बातें बहुत  क्यों कहें उनपे कुछ

लोग मिलते हैं तो कहते हैं कुछ न कुछ

 

सबका कहना ये  सच मैं नहीं मानता

मैं  नहीं   मानता   मैं   नहीं  मानता

 

मैं गली कूचे की की ख़ाक हूँ छानता

करके लेता  हूँ  मैं  जो भी हूँ ठानता

इसका मतलब वो समझें मैं असफल हुआ

मुझसे बेहतर  मुझे  ना कोई जानता

 

उनकी मर्जी जो सोचें ये उनका है मन

मैं  नहीं  मानता   मैं   नहीं   मानता

 

मैं  हूँ  फक्कड़  तुम्हें  इससे आपत्ति क्या

अपनी मर्जी से बढ़कर है सम्पत्ति क्या

अपने  ढंग  से  जियूं  तुमसे लेता नहीं

इसमें भी बोल दो तुमको विपत्ति क्या

 

तुम्हरी अवधारणा लेगा सच मान जग

मैं   नहीं   मानता   मैं   नहीं  मानता

 

मेरे  जैसों  ने  ही  नाम जग में किया

जाने कितनों से ही माना पंगा लिया

अपने सिद्धांत  विश्वास के बस लिए

जग से जाते हुए  ख़ास तोहफा दिया

 

ये  जो  दृष्टान्त  हैं  सब तुम्हारे गढ़े

मैं  नहीं  मानता  मैं  नहीं  मानता

 

बात झूठी मेरी सबका कहना है सच

मैं   नहीं  मानता   मैं  नहीं  मानता

 

पवन तिवारी

२३/१२/२०२१

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