वर्षो
पहले
मैंने
देखा था
मेरे
पुराने घर की
दरकती
दीवार में
एक
नन्हा पीपल
ज़िंदगी
पाकर
मुस्करा
रहा था
एक
दिन मेरी गाय
पगहा
तुड़ाकर
वहाँ
पहुँच गयी
मेरे
हट्ट – हट्ट
करते
– करते
पीपल
का मुस्काता
अंग
खा गया.
कुछ
दिनों बाद
उधर
से गुज़रते हुए
नन्हे
पीपल पर नज़र पड़ी
वह
फिर मुस्करा रहा था
उसमें
नये मासूम
पत्ते
निकल आये थे
मेरा
भी चेहरा खिल गया
वह
थोड़ा स्वस्थ हुआ ही था कि
मुन्नू
की भैंस चरने जा रही थी और
संयोग
से उसकी कुदृष्टि पड़ गयी
नन्हें
पीपल पर
इस
बार केवल
दरार
के अंदर
जितना
था उतना ही बचा
कुछ
महीने बीते
उसमें
फिर
कोमल
पात निकले
इस
बार वह
बकरियों
के हत्थे चढ़ा
बचने
की कोई आशा न थी
लोग
कहते हैं –
बकरी
का चरा पौधा
दुबारा
उभर नहीं पाता
पर
वह उभरा ,
इस
बार दीवार ही गिर पड़ी
कुछ
दिन बाद
वह
फिर से
ढेलों
के बीच से
झाँकता
हुआ दिखाई दिया
जीवन
के प्रति
नन्हें
पीपल की
जिजीविषा
और संघर्ष
यदि
आदमी देखते हुए
समझ
पाता तो
निश्चित
ही जीवन
हरा
भरा होता.
अब
जब वर्षों बाद
गर्मी
की छुट्टियों में
गाँव
लौटने पर उसी जगह
एक
बड़े पीपल के नीचे
बकरियों
को सुस्ताते देखा तो.
पवन
तिवारी
०६/०९/२०२१