यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 16 जनवरी 2022

खुद से ज्यादा उस पर था विश्वास मुझे

खुद से ज्यादा उस  पर था विश्वास मुझे

एक उसी  से  जीवन  में  थी आस  मुझे

उसने  मुझको  घात लगा करके  मारा

ख़ुद ही बिछ जाता कहता वह काश मुझे

 

पूँजी  विश्वासों  की  वह तो  खोया है

आज प्रेम का  मार्ग  बहुत ही रोया है

प्रेम के कंधे पर अब  कैसे  सर  रखेगा

प्रेम बता के छल का बीज वो बोया है

 

पावन   परम्परा  को  दूषित  कर  डाला

विश्वासों की खातिर पी गये  विष प्याला

उस पर भी छलियों को था  संतोष नहीं

प्रेम पथिक क्या पथ को कर डाला काला

 

आज चिताएं  विश्वासों की जलती हैं

स्वार्थ की बेलें नागिन जैसी पलती हैं

उनके  फन भी छल  से कुचले जायेंगे

प्रेम  भरे  उर  को  जो ऐसे छलती है  

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

०४/०३/२०२१

 

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