खुद
से ज्यादा उस  पर था विश्वास मुझे 
एक
उसी  से 
जीवन  में  थी आस  मुझे
उसने
 मुझको  घात लगा करके  मारा
ख़ुद
ही बिछ जाता कहता वह काश मुझे 
पूँजी
 विश्वासों  की  वह
तो  खोया है 
आज
प्रेम का  मार्ग  बहुत ही रोया है 
प्रेम
के कंधे पर अब  कैसे  सर  रखेगा
प्रेम
बता के छल का बीज वो बोया है 
पावन
  परम्परा
 को  दूषित  कर
 डाला 
विश्वासों
की खातिर पी गये  विष प्याला 
उस
पर भी छलियों को था  संतोष नहीं 
प्रेम
पथिक क्या पथ को कर डाला काला 
आज
चिताएं  विश्वासों की जलती हैं 
स्वार्थ
की बेलें नागिन जैसी पलती हैं
उनके
 फन भी छल  से कुचले जायेंगे 
प्रेम
 भरे  उर  को  जो ऐसे छलती है  
पवन
तिवारी 
संवाद
– ७७१८०८०९७८
०४/०३/२०२१
 
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