जिनके माथे चंदन घिसते
वस्त्रों से बदलते वे रिश्ते
आवरण का खेल निराला
है
झूठे मँहगे सच्चे सस्ते
छोटों के बड़े – बड़े बसते
शातिर ही हैं ताने कसते
तुम्हें रस्ते पर हमला देंगे
जो कहते ख़ुद आये रस्ते
जो संघर्षो में अकेले
थे
दिन फिरे तो संग-२
मेले थे
स्वारथ की जीभ सर्वव्यापी
जो गुरू थे बन गये चेले थे
जिनकी गठरी है अर्थ भरी
उनकी मेहरी जग भर से
हरी
जो तकलीफों में निर्धन
हैं
सबकी भौजी उनकी मेहरी
सो श्रम व स्वेद को
साथ रखो
और जगन्नाथ निज हाथ
रखो
दृढ़ता रखना बढ़ते रहना
केवल हरि द्वार पे माथ रखो
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
०१/१०/२०२०