हवा ये जैसे झूम के
आयी है
बरखा जैसी रिमझिम
गायी है
कुछ ऐसे मन से आओ
प्रीतम
मौसम ने भी आग लगायी
है
पीपल पात सा डोल रहा
ना ये मन
बस से बाहर जाने लगा
ये तन
तुमको पाने की यूं
प्यास जगी
सिया की खातिर भटके
राम ज्यों वन
जब से जीवन में आये
हो तुम
तुम बिन हो जता हूँ
गुमसुम
आ जाते हो जब भी
सामने तुम
हिय खिल जाता है
जैसे प्रात कुसुम
हाथों में बस हाथ
हमारा हो
जीवन का साथ हमारा
हो
फिर सारे संघर्ष लगे
प्यारे
प्रेम सकल ही नाथ
हमारा हो
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
२१/०९/२०२०
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