नीम पर भी चहचहाहट
बढ़ रही है
दृश्य की स्पष्टता
भी बढ़ रही है
बदन से जाने लगा
आलस्य भी है
सूर्य की जग से
निकटता बढ़ रही है
बर्तनों की टुन्न
खन-खन बढ़ रही है
धुओं की तादाद भी अब
बढ़ रही है
बिस्तरे खाटों से
लगभग हट चुके हैं
खिड़कियों से रोशनी
भी बढ़ रही है
फड़फड़ाहट पंछियों की
बढ़ रही है
द्वार पर झाडू की भी
गति बढ़ रही है
पशुओं के खूँटा बदलने लग गया है
घूर की भी हैसियत अब
बढ़ रही है
ज़िन्दगी अब तीव्र
गति से बढ़ रही है
और वातावरण में ध्वनि बढ़ रही है
सूर्य के स्वागत में
हर पग चल पड़ा है
सुबह जीवन संग
लेकर बढ़ रही है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
२९/०९/२०२०
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